#उसका_इश्क़_समंदर_की_रेत_जैसा_ही_था_जो_था_तो_मेरी_मुट्ठी_में_पर_मेरा_ना_हो_सका !! Follow more such stories by Rohit Kumar(R.K) https://nojoto.com/post/54b2cb759d0a72f6c158953e9d37f081/ Via Nojoto Download Nojoto App http://bit.ly/Nojoto_Download
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साहस न्यून या अंधा कानून
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ये शोक के आंसू यूँ ही सूख-सूख रह जाएंगे, सब छोड़-छाड़ कर ये बातें अपने घर वापस जाएंगे, गिद्ध, हंस बने जो बैठे हैं एक नया स्वांग रच जाएंगे, मन का मोती चूर चूर कर, तन नोच नोच कर खाएंगे, मुद्दे फिर ये सियासी होकर, न्यायालय में प्यासे होकर, न्याय करो न्याय करो के नारे ही बस दोहराएंगे, गर साहस यूँ ही न्यून रहा, अब भी अंधा कानून रहा निर्दोष फसेंगें फंदे में दोषी कालर टरकाएँगे।।
आज दशकों बाद लौटे हैं धरा पर फिर पुरुष
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घोर तम के बाद देखो फिर वो प्यारा सूर्य आया सब दिशाओं में नई आशाओं का वह भोर लाया खिलखिलाती धूप से चिढ़ने लगे हैं कापुरुष आज दशकों बाद लौटे हैं धरा पर फिर पुरुष।। १।। नईं कलियाँ खिल पड़ी हैं, तितलियाँ जिनपर चढी़ हैं भौरों ने मधु गीत गाए, कलरव खगदल साथ लाए मन लुभाती तान से चिढ़ने लगे हैं कापुरुष आज दशकों बाद लौटे हैं धरा पर फिर पुरुष।।२।। मचल जाए न कहीं तू, फिसल जाए न कहीं तू रोष में जनतंत्र होवे, हो सके षडयंत्र होवे क्योंकि आभा से तेरी जलने लगे हैं कापुरुष आज दशकों बाद लौटे हैं धरा पर फिर पुरुष।।३।।
उठ युवा हुंकार भर
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सुधि पाठकों से अनुरोध है कि वर्तनी में कोई त्रुटि होवे तो क्षमा करें और हमें सूचित करने की कृपा करें ताकि उनमे सुधार किया जा सके। यदि हमर Blog आपको पसंद आये तो कृपया अधिक से अधिक साझा करें.. उठ युवा हुंकार भर देते आए हैं धरा को, सदियों से जो मार्गदर्शन। विश्व की धुँधली छवि को, जो दिखाते स्वच्छ दर्पण। उन महापुरुषों के गुणों से, एक तू स्वीकार कर। उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।। १।। जो पुरातन थीं समस्या, आज वो फिर बढ़ रही हैं। जाति-मजहब की सीढ़ियों से, इंसानियत पे चढ़ रहीं हैं। उन विषैली कुप्रथाओं पर तू, भीषण वार कर। उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।२।। कहता है तू बल नहीं है, अब हमारे हाथों में। साफ कायरता दिखे है, तेरी ऐसी बातों में। अपनी शक्ति को तू, बजरंगी के जैसा याद कर। उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।३।। तुझमें बैठा महामानव, तू तो इतना तुच्छ नहीं है। जो तू दिल से ठान ले तो, फिर असंभव कुछ नहीं है। रजो-तम को त्याग कर, सतोगुण को धार कर। उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।४।।
आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।
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आओ मेरे प्यारे हम सब हाथ मिलाकर चलते हैं बैठा था गीदड़ जो छुपकर, उसने फिर हमें ललकारा है। पीकर के खून जवानों का, वह राक्षस आज डकारा है।। उसको उसकी हम आ जाओ, औकात दिखाने चलते हैं। आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।।१।। ना कायर हैं ना बागी हैं, बाजू अब भी फौलादी हैं। पहले भी मुह की खायी है, पर उसे अक्ल अभी न आयी है। उस धूर्त, अधम - अभिमानी को, चलो धूल चटाने चलते हैं। आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।।२।। नहीं समझेगा वह बातों से, खेलेगा बस जज्बातों से। हो चुके बहुत अब समझौते, मिट्टी भारत की भारत पहुंचे। उस बिखरे से "कश्मीर" को हम, चलो पुनः मिलाने चलते हैं, आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।।३।। रचयिता- रोहित कुमार आर्य मो. नं.- 8181032379 खागा फतेहपुर उत्तर प्रदेश