उठ युवा हुंकार भर

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                         उठ युवा हुंकार भर

देते आए हैं धरा को, सदियों से जो मार्गदर्शन।
विश्व की धुँधली छवि को, जो दिखाते स्वच्छ दर्पण।
उन महापुरुषों के गुणों से, एक तू स्वीकार कर।
उठ युवा हुंकार भर,  उठ युवा हुंकार भर।। १।।


जो पुरातन थीं समस्या, आज वो फिर बढ़ रही हैं।
जाति-मजहब की सीढ़ियों से, इंसानियत पे चढ़ रहीं हैं।
उन विषैली कुप्रथाओं पर तू, भीषण वार कर।
उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।२।।


कहता है तू बल नहीं है, अब हमारे हाथों में।
साफ कायरता दिखे है, तेरी ऐसी बातों में।
अपनी शक्ति को तू, बजरंगी के जैसा याद कर।
उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।३।।


तुझमें बैठा महामानव, तू तो इतना तुच्छ नहीं है।
जो तू दिल से ठान ले तो, फिर असंभव कुछ नहीं है।
रजो-तम को त्याग कर, सतोगुण को धार कर।
उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।४।।


धर्म दलदल में फंसा है, युद्ध भीषण फिर शुरू हैं।
तुम हो सीधे-साधे पाण्डव, ये विधर्मी सब कुरू हैं।
"विदुर-कान्हा" नीति पे चल, गाण्डीव की टंकार कर।
उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।५।।


तू विचरता है भविष्य में, झूठे सपनो में है खोया।
आम कैसे खायेगा? जब, बीज कीकर का है बोया।
उचित वृक्षों को लगा, उनको सदा फलदार कर।
उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।६।।


देश फिर से खो रहा है, फिर भी तू क्यों सो रहा है?
आशा में बैठा वो राष्ट्र, देख कैसे रो रहा है?
अपनी मढ़ी इन आँखों को, उसकी तरफ एक बार कर।
उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।७।।


"विश्वगुरु" कहलाते थे हम, जगत में फैली थी ख्याति।
शत्रु घुटने टेकते थे, देख पौरुषपूर्ण छाती।
फिर भुजाओं को उठा कर, 'नाम' वो साकार कर।
उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।८।।

  - रोहित कुमार

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