आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।
आओ मेरे प्यारे हम सब हाथ मिलाकर चलते हैं
बैठा था गीदड़ जो छुपकर,
उसने फिर हमें ललकारा है।
पीकर के खून जवानों का,
वह राक्षस आज डकारा है।।
उसको उसकी हम आ जाओ,
औकात दिखाने चलते हैं।
आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।।१।।
ना कायर हैं ना बागी हैं,
बाजू अब भी फौलादी हैं।
पहले भी मुह की खायी है,
पर उसे अक्ल अभी न आयी है।
उस धूर्त, अधम - अभिमानी को, चलो धूल चटाने चलते हैं।
आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।।२।।
नहीं समझेगा वह बातों से,
खेलेगा बस जज्बातों से।
हो चुके बहुत अब समझौते,
मिट्टी भारत की भारत पहुंचे।
उस बिखरे से "कश्मीर" को हम, चलो पुनः मिलाने चलते हैं,
आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।।३।।
रचयिता- रोहित कुमार आर्य
मो. नं.- 8181032379
खागा फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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