साहस न्यून या अंधा कानून

ये शोक के आंसू यूँ ही सूख-सूख रह जाएंगे,
सब छोड़-छाड़ कर ये बातें अपने घर वापस जाएंगे,
गिद्ध, हंस बने जो बैठे हैं एक नया स्वांग रच जाएंगे,
मन का मोती चूर चूर कर, तन नोच नोच कर खाएंगे,

मुद्दे फिर ये सियासी होकर, न्यायालय में प्यासे  होकर, 
न्याय करो न्याय करो के नारे ही बस दोहराएंगे, 
गर साहस यूँ ही न्यून रहा, अब भी अंधा कानून रहा
निर्दोष फसेंगें फंदे में दोषी कालर टरकाएँगे।।

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