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उठ युवा हुंकार भर

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सुधि पाठकों से अनुरोध है कि वर्तनी में कोई त्रुटि होवे तो क्षमा करें और हमें सूचित करने की कृपा करें ताकि उनमे सुधार किया जा सके। यदि हमर Blog आपको पसंद आये तो कृपया अधिक से अधिक साझा करें..                                 उठ युवा हुंकार भर देते आए हैं धरा को, सदियों से जो मार्गदर्शन। विश्व की धुँधली छवि को, जो दिखाते स्वच्छ दर्पण। उन महापुरुषों के गुणों से, एक तू स्वीकार कर। उठ युवा हुंकार भर,  उठ युवा हुंकार भर।। १।। जो पुरातन थीं समस्या, आज वो फिर बढ़ रही हैं। जाति-मजहब की सीढ़ियों से, इंसानियत पे चढ़ रहीं हैं। उन विषैली कुप्रथाओं पर तू, भीषण वार कर। उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।२।। कहता है तू बल नहीं है, अब हमारे हाथों में। साफ कायरता दिखे है, तेरी ऐसी बातों में। अपनी शक्ति को तू, बजरंगी के जैसा याद कर। उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।३।। तुझमें बैठा महामानव, तू तो इतना तुच्छ नहीं है। जो तू दिल से ठान ले तो, फिर असंभव कुछ नहीं है। रजो-तम को त्याग कर, सतोगुण को धार कर। उठ युवा हुंकार भर, उठ युवा हुंकार भर।।४।।

आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।

आओ मेरे प्यारे हम सब हाथ मिलाकर चलते हैं    बैठा था गीदड़ जो छुपकर, उसने फिर हमें ललकारा है। पीकर के खून जवानों का, वह राक्षस आज डकारा है।। उसको उसकी हम आ जाओ, औकात दिखाने चलते हैं। आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।।१।। ना कायर हैं ना बागी हैं, बाजू अब भी फौलादी हैं। पहले भी मुह की खायी है, पर उसे अक्ल अभी न आयी है। उस धूर्त, अधम - अभिमानी को, चलो धूल चटाने चलते हैं। आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।।२।। नहीं समझेगा वह बातों से, खेलेगा  बस जज्बातों से। हो चुके बहुत अब समझौते, मिट्टी भारत की भारत पहुंचे। उस बिखरे से "कश्मीर" को हम, चलो पुनः मिलाने चलते हैं, आओ मेरे प्यारे हम सब, हाथ मिलाकर चलते हैं।।३।। रचयिता- रोहित कुमार आर्य मो. नं.- 8181032379           खागा फतेहपुर उत्तर प्रदेश